प्रस्तावना : –
महाराष्ट्र के पश्चिमी सह्याद्री पर्वत पर भिमाशंकर वाईल्ड लाईफ सेन्चुरी के अंदर घणे जंगल में येलवली गाँव बसा हुआ हैं। यह गाँव पुणे जिला के राजगुरूनगर तालुक से ५८ कि. मी दुरीपर है। १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक भीमाशंकर मंदिर के दक्षिण दिशा कि तरफ ४ कि. मी दुरीपर एक पहाड के उपर यह गाँव है। इस गाँव को पुणे, ठाणे, रायगड ये तिनो जिलों कि सिमाए है। गाँव के आसपास बहुत घना जंगल और पश्चिमी दिशा की तरफ कोकणकडा नाम की एक बहुत गहरी व्हॅली है। येलवली गाँव में सिर्फ १६ घरों कि बस्ती और लगबग ९७ के आसपास लोग रहते हैं। गाँव समुद्रीस्तर से ६११ मिटर ऊँचाई पर स्थित है।
गाँव शहर से पचास कि.मी दुरिपर होने के कारण गाँव में कुछ महत्वपूर्ण सुविधाएँ नही पहुंच पाती जैसें कि पानी, बिजलीं, रास्ता, शिक्षा, आरोग्य इ. येलवली गाँव में आदिवासी और दलित समुदाय के लोग रहते हैं। गाँव बहुत अतिदुर्गम भाग में स्थित होने के वजह से अभितक प्रशासन का इस गाँव में ध्यान नहीं गया। येलवली गाँव में चौथी कक्षा तक स्कूल है। एक और बात है कि गाँव के दस किलोमीटर दुरीपर रहने वाले लोगों को येलवली गाँव के बारें में पता नहीं।
येलवली गाँव में २५०० से ३००० मि.मी तक बारिश होती है। इतनी बारिश होने के बावजूद भी गाँव में पानी की कमी महसुस होती है। जनवरी और फरवरी के दरम्यान नदी और पानी के सारे झरने खत्म हो जाते हैं। उसके बाद लोगों को नॅचरल वाॅटर टँकर जैसे पानी के उपर निर्भर रहना पड़ता है। मे और जून महिने से गाँव के लोगों को २.५ से ३ कि.मी दुरीपर पहाड़ उतरकर निचे भोरगिरी गाँव से पिने के लिए पानी लेके आना पड़ता है। आपणी आजीविका के लिए गाँव के लोग शहद, शिकेखाई, हिरडा, बेहडा, और जंगली जडीबुटीया के जैसे वनोपज जंगल से लाकर भेज देते हैं शुरुआत में इस तरह के वनोपज बेचने के लिए बेहद मुश्किल था। जैसे कि वनहक्क कानुन की जानकारी मिलने के बाद वनविभाग के अधिकारियों से छुटकारा मिल गया।
गाव के बदलावं में कल्पवृक्ष की भूमिका:
शुरुआती दिनो में येलवली गाँव में सुविधाएं बहुत ही कम थीं। येलवली गाँव अस्तित्व में भी है यह बहुत सारे लोगों को पता भी नही था। यहां तक कि गाँव के लोगों को आपने खुद के और जंगल अधिकार के बारें में कुछ भी पता नहीं था। सन २००८ में जब कल्पवृक्ष संस्था ने आपना काम करने के लिए शुरुआत की तब गाँव के कुछ हालात अलग हो गये थे। जैसे की पाहले लोग सिर्फ अपने ही काम में जुड़े रहते थे। गाँव के विकास की प्रक्रिया में कोई भी शामिल नहीं हो रहा था। जब पहिली बार येलवली के गाँव में कल्पवृक्ष ने बैठक आयोजित की तब शुरुआत में बहुत कम लोग बैठक में शामिल थे। वनहक्क कानुन, २००६ के तहत स्थानिक लोगों को उनके पारंपारीकी जंगल के उपर के सामूहिक अधिकार मिले और लोग खुद अपना जंगल बचाने एवं उसका व्यवस्थापन करने के लिये आगे आने की प्रक्रिया गाँव में शुरू कर दी गयी। कुछ दिन बाद गाँव के लोग धिरे धिरे इस प्रक्रिया में जुडने लगें और पुरी प्रकिया को समझने लगे।
कल्पवृक्ष के वजह से येलवली के गाँव में एक ऐसा संगठन बन गया था जिसमे महिलायें भी शामिल थीं। अगर किसी भी प्रकार का निर्णय लेना हो तो गाँव कें लोँग साथ मिलकर लेते थे। इसमें जल, जंगल, जमीन या फिर गाँव के विकास के कुछ मुद्दों को लेकर काम करने की शुरुआत की थीं। जहाँ जहाँ दिक्कतें आती थीं वहाँ कल्पवृक्ष मदद कर रहाँ था। यें पुरी प्रकिया में कल्पवृक्ष कि ये सोच थी कि जंगल संरक्षण और आजीविका की प्रक्रिया में गाँव आगे चलकर खुद अपने पैरों पर खडा रहें। धीरे धीरे गाव में बदलावा आने लागा और गाँव के लोगोंने और महिलाओं ने भी गाँव को आगे ले जाने के लिए कडी मेहनत की। जितने भी गाँव में बदलाव आये इसमें शराब बंदी, शिकार बंदी, बिजली की सुविधा, वनोपज के आधार पे रोजी मिलना, इको-पर्यटन विकास इसमे कल्पवृक्ष संस्था का बडा योगदान रहा है। पैसे देकर किसी भी गाँव का अस्थायी विकास कर सकते हैं लेकिन उसका कोई फायदा नही है। गाँव के लोगों की जंगल संरक्षण और आजीविका के मुद्दे को लेकरं क्षमता वृद्धी करने के बाद ही गाँव में स्थायी बदलाव आना संभव है यह संस्था का मानना है।
गाँव और जंगल संरक्षण?
कुछ दस साल पहले की बात हैं जब येलवली गाँव के लोगों ने वनहक्क कानून २००६ के तहत गाँव के पारंपरिक जंगल का संरक्षण, व्यस्थापन और पुनर्निर्माण करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था| कानुन के कुछ अलग अलग प्रावधानों के बारे में गाँव के लोगों को हमेशा जानकारी दी जाती थी। इस प्रक्रिया के वजह सें गाँव के लोगों को पता चला कि जंगल हमारा हैं और इस जंगल का संरक्षण हमें खुद करना हैं यह एहसास गाँव के लोगों को हो गया।
जंगल के उपर गाँव की पुरी रोजी और अजीविका निर्भर है, जिसमें जंगली जडीबुटीया , फल, फूल, शहद, जलावन लकडी जैसे और भी अनेक वनोपज है| कल्पवृक्ष के मदद से गाँव के लोगोंनें जंगल संरक्षण करने का फैसला लिया और यह भी तय किया की हम खुद भी शिकार नहीं करेंगे और दूसरों को भी नही करने देंगे। येलवली गाँव के आसपास सबसे ज्यादा जंगल और जंगली प्राणी होने के कारण यहाँ बहुत प्राणीयो का शिकार हो रहा था। लेकिन इसमे एक बड़ी समस्या यह थी कि बाहर से जो लोग शिकार करने के लिए आ रहे है तो उन्हें किस तरह से रोका जा सकता है।
उस वक़्त हम लोग ने आसपास के गाँव में जाकर बैठक लेंकर हम जो कर रहें हैं ये पुरी प्रक्रिया उनके सामने रखकर जंगल संरक्षण एवं व्यवस्थापन के काम में उनकी मदद लेने का प्रयास किया। आसपास के गाँव में जब जाकर बैठक लेना शुरुआत किया और जंगल संरक्षण की पुरी प्रक्रिया बताई तो लोग मान गए। कभी कभी अगर कोई शिकार करने के लिए आता था तो गाँव के लोग उन्हें जाकर समझाते थे कि दुबारा शिकार करने के लिए मत आओ। इस तरह से शिकार बंद करने के लिए गाँव ने कदम उठायें थें। शिकार कम होने के वजह से प्राणियों की संख्या बढी है|
गाँव में निर्णय कैसे लेते हैं?
येलवली गाँव में एक लोकतंत्र प्रशासन के जैसे निर्णय लिए जाते हैं। जैसे कि गाँव के अंदर जब भी कोई बैठक आयोजित की जाती है। तब सभी गाँव के लोगों को दो या तिन दिन पहले बताया जाता है, कि कब और कहा बैठक है। बैठक में जितने भी लोग हैं सभी लोगोंकों आपनी बात रखने का मौका दिया जाता है। हर बैठक में महिलाएं भी शामील होती है। गाँव में बैठक लेने से पहले लोगों को पूछकर समय और वक्त तय किया जाता है। ताकि सभी लोग उपस्थित रहे। अगर कम लोग हैं तो बैठक दुसरी तारिख को तए कि जाती है। और जो तारीख तए होती है उसी दिन जितने भी लोग हैं और उन लोगों ने जो भी फैसला लिया है वह फैसला सभीको मंजूर करना पडता है। बैठक में गाँव के अलग अलग विषय पर चर्चा की जाती है। जैसे कि गाँव की दिक्कतें, पानी, रस्ता, बिजली, टुरिझम, रोजी, और समिति के अंन्दर से जितने भी काम करने है सभी बैठक में तए किया जाता है। गाँव के समिति के अंदर जितना भी पैसा है और कहाँ कहाँ खर्चा करना है और किस काम के लिए कितना पैसा खर्च होगा ये सभी लोगों के सामने बताया जाता हैं। और सबकी मंजुरी होने के बाद आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती हैं।
येलवली गाँव में इको – टुरिझम की शुरुवात कैसे हुई।
येलवली गाँव प्राकृतिक सुंदरता एवं भीमाशंकर तीर्थक्षेत्र के बहुत पास होने के कारण इस गाँव में पहले से ही श्रद्धालु लोग और घुमनेके लिये बहुत सारे टुरीस्ट लोग आते थे। उनके जंगल एवं गाव में होने वाले कोई भी कार्य एवं नुकसान के लिये उन्हे उनके उपर निगरानी रखना एवं उनके विनाशकारी टुरिस्ट कार्यो पर अंकुश लाने वाला कोई भी सिस्टम गाव में नही था। वैसे भी टुरिस्ट लोगों के रहने का कोई भी प्रबंध गाँव में नही था। इसलिये ये लोग अपने वैयक्तिक स्तर पर स्थानिक लोगों से कॉन्टॅक्ट बनाकर घर में या घर के बारामदे में आपना डेरा डाल देते थे। लेकिन कुछ २-३ घरों को ही इस कार्य से थोडी बहुत आमदनी मिलती थी। कभी कभी कुछ टुरिस्ट लोक जंगल में भी रुक जाते थे। इस तरह घुमने आने वाले लोगों पर कोई नियंत्रण ना होने के वाजह से जंगल, वन्य प्राणी, पर्यावरण और गाँव के उपर विपरीत परिणाम होने का खतरा दिखना शुरु हुआ था। ये सब देखते हुए गाँव में काम करनेवाली पुणे स्थित कल्पवृक्ष संस्था ने गाव में लोगों के साथ बैठकर उपर बतायें हुए परिणामों के उपर और उसका हल निकालानें के मुद्दे के बरे में लोगों के साथ बातचीत करना शुरु किया| इन सभी प्रक्रियाओंसे लोगों ने तय कर लिया कि गाँव में “समुदाय आधारित पर्यावरण पूरक पर्यटन” कार्यक्रम शुरु किया जाय| इसके बाद गाँव के माध्यम से पर्यटन की शुरुआत की गई जिसमें “होम स्टे“ (लोगों के घरोंमें रहने और खनेकि सुविधा) की शुरुआत करने का तय हुआ। इस तरह गाँव मे “समुदाय आधारित पर्यावरण पूरक पर्यटन” कार्यक्रम की शुरुआत हो गई।
पर्यटन विकास कर्यक्रम के पहले कल्पवृक्ष संस्था की मदद से वन एवं पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन करने का निर्णय गाँव ने लिया था और इस कार्य में वन विभाग को मदद के लिये पत्र लिखकर पुणे स्थित मुख्य वन्यजीव संरक्षक श्री एम के राव जनाब के साथ लोगों ने मिटिंग भी की थी। सन २०११ के अंत में येलवली गाँव में ऊस वक्त महाराष्ट्र राज्य के वन सचिव श्रीमान. प्रवीणसिंह परदेशी जनाब के माध्यम से “ग्राम परिस्थिती विकास योजना का प्रारंभ किया गया। जनाब ने खुद येलवली में आकर लोगों से मिलकर कार्यक्रम कि शुरुआत करने का ऐलान किया था जिसके बदौलत गाँव और जंगल विकास के लिये गाँव को सरकारी पैसा भी मिला था| गाँव के लोगों ने इकठ्ठा बैठकर इन पैंसों का विनियोग कौन कौन से काम के लिये होगा यह तय किया। जिसमें समुदाय आधारित पर्यावरण पूरक पर्यटन विकास कार्यक्रम को प्राथमिकता दी गई। पर्यटन विकास कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यटकों के रहने के लिये लोगों ने खुद इको-लॉज बनाया जिसका काम पुरे गाँव के लोगों ने इकठ्ठा मिल कर किया| गाँव में पानी एवं रास्ता न होने के कारण इको-लॉज का काम पुरा करने के लिए १६-१७ महिने लगे। काम पुरा होने के बाद दुबारा महाराष्ट्र राज्य के फॉरेस्ट सेक्रेटरी श्रीमान प्रवीणसिंह परदेशी साहब ने आकर इको-लॉज का और समुदाय आधारित पर्यावरण पूरक पर्यटन विकास कार्यक्रम का उदघाटन किया था। इस के बाद होम स्टे बंद करके गाँव में आनेवाले सभी पर्यटकों के रहने और खाने की व्यवस्था इको-लॉज में करने का तय किया गया।
“समुदाय आधारित पर्यावरण पूरक पर्यटन कार्यक्रम के बारेमे गाँव में कुछ निम्नलिखित नियम बनाये थे।
* येलवली में कोई भी परिवार टुरीस्ट को अपने घर पर नहीं रखेंगे।
* इको-लॉज पर आवश्यकता अनुसार मजदूर रखे जायेंगे। और हर घर को बराबर रोजगार मिलने का खयाल रखा जायेगा।
* पर्यटकोंकि संख्या कम से कम १० और जादा से जादा ३० होगी।
* पर्यटकोंने आने से ३ दिन पहले गाँव को बताना जरूरी है।
* गाँवके अनुमती के बिना और स्थानिक गाईड के बिना कोई भी पर्यटक जंगल में एवं गाव में घुमेगा नही।
* हर व्यक्ती जंगल, वन्यप्राणी, पाणी, स्थानिक लोग एवं पुरे पर्यावरण का आदर करने एवं उसके संरक्षण प्रति कटिबद्ध रहेगा।
* गाव एवं जंगल में किसी भी प्रकार का गैरव्यवहार एवं कचरा करना मना है|
इस तरह कुछ अलग अलग नियम टुरिझम को चलाने के लिए बनाएं गए। टुरिझम का पुरा नियंत्रण गाँव खुद करता है| पहले शुरुआती दिनो में पर्यटक आने और उनकी व्यवस्था रखने में बहुत सारी कठीनाईयों का सामना करना पडा। येलवली इको-टुरिझम को जादा से जादा पर्यावरण प्रति आदर करणे वाले लोगों तक पहुंचाने में श्रीमान पियुष शेखसरिया जी ने बहोत मदद कि और अभि भी करा रहे है। अभ धिरे धिरे गाँव में पर्यावरण प्रति रुची रखने वाले और उसका आदर करणे वाले टुरीस्ट की संख्या बढ़ गई और सबको रोजी मिलने लगी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पर्यावरण प्रति असंवेदनशील लोगों कि बजाय पर्यावरण प्रति प्रेम रखने वाले लोगों तक पहुचने का जादा से जादा प्रयास किया जाता है|
गाँव में कुछ मुख्य अच्छे बदलाव: –
येलवली गाँव ने खुद जंगल संरक्षण करने का फैसला और इको टुरिझम की वजह से येलवली गाँव की एक अलग पहचान बन गईं। गाँव में ग्राम परिस्थितीकी समिति गठित करने के वजह से और नियमित ग्राम सभा में सभी निर्णय लेने कि वजहसे लोगोंमें सभी व्यवहारोंकी पारदर्शिता बनी है| लोगों कि भी अलग अलग सुविधाएं मिल गई है। समिति के अंदर जो भी पैसे आए थे उन्हीं पैसों से पानी की थोडी बहोत उलझने खत्म हो गई है। लेकिन पानी का पुरा हल नहीं निकल पाया है| वनहक्क कानून के अच्छे प्रावधानों और इको टुरिझम के वजह से येलवली गाँव के लोगों को कूछ हद तक रोजीं मिल गई है। और टुरिझम होने के वजह से गाँव में भारत भर से अलग अलग जगहोसे टुरीस्ट लोग आते है। टुरीस्ट आने के बाद गाँव में नये नये उपक्रम आयोजित किए गए। उन उपक्रम के माध्यम से गाँव के लोगों के अंदर का डर धीरे धीरे खत्म हो गया।
गाँव के सामने की दिक्कतें :-
गाँव अभयारण्य क्षेत्र में होने के कारण वन्यजीव अधिनियम के अनुसार कुछ धाराओं और प्रावधानों के वजह से गाँव में कुछ महत्वपूर्ण सुविधाएं नहीं पहुंच पाती है। जैसे कि रस्ता और पानी कि उलझने अभि भी खत्म नहीं हुई है। वनहक्क कानून की धारा ३(२) तहत रास्ता बनाने के लिए वनविभाग के पास कुछ जगह की माँग की लेकिन वनविभाग के अधिकारियों ने जानबूझकर रास्ते के प्रस्ताव को रोक के रखा है।
भिमाशंकर अभयारण्य क्षेत्र में शिकार के खिलाफ आवाज उठाने वला पहीला येलवली गाँव है। जिस गाँव ने खुद आपना जंगल संरक्षण और पुनर्निर्माण करने के लिए कोशिश की लेकीन वनविभाग के अधिकारियों नें कभी गाँव की सहायता नहीं की, येलवली गाँव में वनविभाग के माध्यम से समिति बनाई गईं थीं। उस समिति के अंदर जितने भी पैसे आते थे हर बार हिसाब गाँव के लोग लेते थे। इसलिए वनविभाग के अधिकारियों को करप्शन करने नहीं मिला तो वनविभाग के माध्यम से जितने भी पैसे आते थे वाह दुसरे गाव को मिलते थे लेकिन येलवली गाँव को नहीं मिलते थे। जहां वनविभाग के अधिकारियों को हिसाब पुछा नही जाता है वहां पर बहुत सारा सरकारी पैसा आता भी है और गाँव के अनुमती बिना झट से खर्च भी होता है| लेकिन येलवली में वन अधिकारी हर एक छोटी चीज के लिये परेशान करते है| कानूनन २०११ के शासन निर्णय अनुसार ग्राम सभा को सभी निर्णय लेणे एवं पैसा खर्च करने का हक है जो वन विभाग को भी मान्य करना अनिवार्य है| लेकिन अभि हर खर्च के लिये मुख्य वन्यजीव संरक्षक, पुणे कि अनुमती होना जरुरी है ऐसा बताया जाता है जिसके बदौलत हर छोटी सी चीझ को वनविभाग के मेहरबानी पार निर्भर होना पडता है और हर काम में वन अधिकारियोंद्वारा जानबूझकर परेशान किया जाता है।
पाच साल पहले वनहक्क कानुन २००६ के तहत येलवली गाँव ने वन संसाधन हक्क और सामुहिक हक्क ऐसें दो दावे उपविभागीय स्तरीय समिती के पास दिए हैं। हर बार पूछताछ करने के बाद भी अभी तक न्याय नही मिला।
सुभाष डोलस
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